कबीर दास पर निबंध हिंदी में Essay on Kabir Das
हैलो दोस्तों आज के इस लेख कबीरदास पर निबंध हिंदी में (Essay on kabir das) में, आपका बहुत-बहुत स्वागत है। दोस्तों इस लेख में आज हम भक्ति काल के महान संत तथा समाज सुधारक (Social Reformer) कबीरदास पर निबंध पढ़ेंगे।
कबीर दास पर निबंध में आज हम जानेंगे कि कबीर दास जी कौन थे? उनका जन्म कहां हुआ था? कबीरदास जी की रचनाएँ कौन-कौन सी हैं? तो आइए दोस्तों शुरू करते हैं, कबीर दास जी पर निबंध:-
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कबीर दास कौन थे Who was Kabir Das
कबीर दास एक प्रसिद्ध संत, समाज सुधारक तथा महान कवि थे, जिन्होंने अपने जीवन में पाखंड, मूर्ति पूजा,अंधविश्वास का घोर विरोध किया।
संत कबीर दास ने ईश्वर अल्लाह दोनों को एक कहा। भक्ति काल में जन्मे कबीर दास जी ईश्वर के एक परम भक्त थे, जिन्होंने भक्ति आंदोलन (Bhakti Movement) में अपना अमूल्य सहयोग दिया था।
भक्ति आंदोलन के द्वारा ही कबीर दास जी ने पाखंड अंधविश्वास, कुरीतियाँ का विरोध किया। कबीरदास एक छोटी जुलाहा जाति के थे।
इसलिए उन्हें हिंदू और मुसलमान दोनों ने ही बहुत प्रताड़ित किया था, लेकिन कबीरदास जी हिंदू और मुसलमान दोनों को ही अपना भाई मानते थे
और कहते थे, ईश्वर एक है, जिनका नाम अल्लाह और भगवान है। कबीर दास जी ने अपने काव्य के माध्यम से निर्गुण ब्रह्म की स्तुति जन-जन तक पहुंचाई।
कबीर दास जी का जन्म Birth of Kabir Das
कई कहानियों के आधार पर बताया जाता है, कि कबीर दास को एक विधवा ब्राह्मणी (widow brahmin) ने जन्म दिया था और लोक लाज के कारण उस विधवा ब्राह्मणी ने कबीर दास जी को काशी में
लहरतारा नामक तालाब के किनारे रख दिया था, किंतु कुछ लोगों का मानना है, कि कबीर दास जी का जन्म ही नहीं हुआ था। कबीर दास जी एक कमल के फूल पर अवतरित हुए थे।
इसलिए कबीर दास जी भगवान के अवतार थे। वस्तुत: कबीर दास जी का जन्म 1398 काशी में हुआ था। लहरतारा नामक तालाब के पास से जब एक मुस्लिम दंपत्ति भीरू और नीमा गुजर रहे थे,
तब उनकी दृष्टि बालक कबीर पर पड़ी है और वह उसे अपने घर ले आए। कबीर दास जी बचपन से ही भगवान श्रीराम (Lord Shriram) का भजन करते थे, और उन्हें अपना सब कुछ मानते थे।
कबीर दास जी का विवाह हुआ और उनकी दो संतानें हुई जिनका नाम कमाल और कमाली था। कबीर दास घर गृहस्थी चलाने के लिए जुलाहे का काम किया करते थे, और भगवान का भजन करते हुए 120 वर्ष की आयु में परलोक सिधार गए।
कबीरदास का प्रारंभिक जीवन Early life of Kabir Das
कबीर दास जी में बचपन से ही भक्ति के गुण कूट-कूट कर भरे हुए थे। हमेशा श्री राम नाम का जप किया करते थे। कबीरदास के माता-पिता को कई बार कबीरदास पर भूत प्रेत का साया होने का भय हुआ
जिसके लिए उन्होंने हकीम और ओझाओं का सहारा लिया किंतु सभी ने यह कह दिया कि कबीरदास बिल्कुल सही है, उन्हें किसी प्रकार का रोग या भूत प्रेत का साया नहीं है। कबीर दास जी अनपढ़ (Illiterate) थे।
और वह रामानंद को अपना गुरु बनाना चाहते थे, किंतु रामानंद उस समय नीची जाति वाले लोगों को अपना शिष्य नहीं बनाते थे। फिर भी कबीरदास तो रामानंद को अपना गुरु मानते थे, कहा जाता है कि
कबीर दास ने छोटी उम्र में ही रोने की लीला कर रामानंद को अपना गुरु बना लिया था। साधु संगति और ईश्वर की भक्ति के द्वारा ही उन्हें सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ।
अपना गुजारा करने के लिए कबीर दास जी ने कपड़े बुनने का काम (knitting fabric) शुरू कर दिया और वे कपड़ा बनाने का काम किया करते थे।
उससे जो कुछ भी धन मिलता था उससे ही अपना और अपने परिवार का भरण पोषण किया करते थे। उन्होंने अपने जीवन (Life) में कभी भी किसी वस्तु का लोभ (Greed) नहीं किया।
कबीर दास एक समाज सुधारक के रूप में Kabir Das as a social worker
कबीर दास जी एक महान दार्शनिक तथा रहस्यवादी समाज सुधारक थे। समाज में व्याप्त विभिन्न प्रकार की कुरीतियों का उन्होंने डटकर विरोध किया है।
कबीर दास जी ने हिंसा (Hinsa) का विरोध करते हुए कहा,कि किसी भी जीव को नहीं मारना चाहिए और ना ही उसका मांस खाना चाहिए।
किसी भी जीव का मांस खाने से व्यक्ति पाप का भागी होता है। कबीर दास जी ने जात-पात का भी भयंकर विरोध किया है और कहा है इंसान को जात-पात के नाम पर नहीं लड़ना चाहिए
हम सब एक ही ईश्वर की संतान हैं और ईश्वर ने हम सबको बराबर बनाया है। यहाँ ना कोई हिंदू है ना कोई मुसलमान हम यहाँ पर एक समान भाई - भाई ही हैं।
कबीर दास जी ने मूर्ति पूजन का खंडन करते हुए कहा है, कि अगर पत्थर की मूर्ति पूजने से ईश्वर मिलते हैं, तो में पहाड़ पूजने के लिए तैयार हुँ, इसलिए किसी भी मूर्ति पूजन से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती।
ईश्वर की प्राप्ति सच्चे मन भक्ति और सच्चे ज्ञान के द्वारा ही होती है। पाखंड का विरोध करते हुए कबीर दास जी ने कहा है, कि जो लोग दिन में उपवास रखते हैं
वही रात्रि में मदिरा और माँस का सेवन करते हैं, जो लोग भगवान की पूजा अर्चना मंदिर में जाकर करते हैं वही लोग अपने माता-पिता तथा अन्य लोगों को दुख देते हैं। ऐसे दिखावे और पाखंड से कुछ नहीं होगा,
ईश्वर तभी मिलेंगे जब आपके काम अच्छे होंगे। कबीर दास जी ने सभी लोगों को कर्म, ज्ञान परोपकार और महानता की ही शिक्षा दी है।
कबीरदास की प्रमुख रचनाएँ compositions of Kabir Das
कबीर दास की मुख्य कृति बीजक है , छंद पर आधारित होने के कारण इसके तीन भाग है:-
- साखी - साक्षी संस्कृत भाषा के शब्द साक्षी का तद्भव रूप है, कबीर दास जी के सिद्धांतों, नियमों तथा ज्ञान को सोरठे छंद से अभिभूत कर साखी में संग्रहित किया है।
- सबद - सबद कबीर दास की एक संगीतमय रचना है। इसमें भावों, प्रेम तथा साधना की अभिव्यक्ति की गई है।
- रमैनी - रामैनी में कबीर दास जी के रहस्यमयी और धार्मिक विचारों का वर्णन किया गया है, जो चौपाई छंद में लिखे गए हैं।
इसके साथ ही कबीर दास जी ने कथनी करणी का अंग ,चाणक का अंग, राम बिनु तन को ताप न जाई, कबीर के पद, भेष का अंग, कामी का अंग,नीति के दोहे, कबीर की साखियाँ आदि रचनाओं को लिखा है।
कबीरदास का भाव पक्ष Kabeerdas ka Bhav Paksh
कबीर दास जी भक्ति काल के एक महान समाज सुधारक तथा संत थे। इसलिए उन्होंने हमेशा निराकार ब्रह्म की भक्ति और पूजा की।
कबीर दास जी का मानना था कि सच्चे प्रेम और ज्ञान के द्वारा ईश्वर हमें अवश्य मिल सकते हैं। कबीर दास जी ने कहा, कि ईश्वर प्राप्ति के लिए
प्रभु स्मरण और गुरु स्मरण दोनों अति आवश्यक है। इसलिए कबीर दास जी ने गुरु को ईश्वर से भी बड़ा स्थान देकर कहा है:-
गुरु, गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय।।बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए
कबीर दास जी ने नारी और माया दोनों का ही भयंकर विरोध किया है, और समाज सुधारक की भूमिका निभाते हुए उन्होंने पाखंड और ठग और भेषधारी लोगों पर तीक्ष्ण कटाक्ष भी किया है।
कबीर दास जी हमेशा मूर्ति पूजा, तिलक माला आदि बाहरी पाखंड का डटकर विरोध किया करते थे। कबीर दास जी का मानना था
बाहरी पाखंड और आडंबर से ईश्वर प्राप्त नहीं होते बल्कि ईश्वर सच्चे ज्ञान और सच्ची भक्ति के द्वारा ही प्राप्त होते हैं। कबीर दास जी ने कहा है, हिंदू और मुसलमान दोनों भाई-भाई हैं, जबकि अल्लाह और ईश्वर दोनों एक ही हैं।
कबीर दास जी का कला पक्ष Kabeerdas ka Kala Paksh
वास्तव में कबीर दास जी अनपढ़ थे वे कभी भी किसी भी विद्यालय में या आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने के लिए नहीं गए। कबीर दास जी ने अपना गुरु रामानंद (Guru Ramananad) को बनाया था,
किन्तु कबीर दास जी को सच्चा ज्ञान ईश्वर की भक्ति और साधु संगति के द्वारा ही प्राप्त हुआ था। इसलिए कबीर दास जी की भाषा साधुक्कड़ी भाषा (sadhukkadi language) कहलाती है।
कबीर दास जी की भाषा को खिचड़ी भाषा भी कहा जाता है। कबीर दास ने अपनी रचनाओं में राजस्थानी, पंजाबी गुजराती, अरबी, फारसी और हिंदी आदि के शब्दों का मिलाजुला प्रयोग किया है।
ईश्वर की भक्ति करने के कारण उन्होंने बहुत से शब्दों को अपनी वाणी में मिला लिया है, इसीलिए कबीर दास जी की रचनाओं में विभिन्न प्रकार की भाषाओं के शब्दों का प्रयोग देखने को मिलता है।
साहित्य में स्थान Sahitya Mai Sthan
हिंदी साहित्य में कई महान कवियों और साहित्यकारों का उदय हुआ है, किंतु जब बात करते हैं, कबीर दास जी की तो कबीर दास जी उन सब कवियों में सबसे महान है।
क्योंकि वह कवि होने के साथ ही एक समाज सुधारक तथा एक महान संत भी थे। भक्ति काल की निर्गुण काव्यधारा के कवि होने के नाते कबीर दास जी जीवनभर आडंबर और पाखंड के खिलाफ लड़ते रहे।
कबीर दास जी ने हमेशा लोगों को दिखावा आडंबर तथा कुरीतियों से बचने तथा सत मार्ग और धर्म पर चलने की सलाह दी। इसीलिए कहा जा सकता है, कि अभी तक हिंदी साहित्य मेकबीर दास जी जैसा
संत, मानवतावादी तथा एक समाज सुधारक (Social Reformer) पैदा ही नहीं हुआ। अतः एक समाज सुधारक, संत तथा कवि के रूप में कबीर दास जी का साहित्य में सबसे प्रमुख स्थान है।
निष्कर्ष Conclusion
संसार में ऐसे कई महापुरुष जन्म लेते है जो निस्वार्थ भाव से मानव समाज की सेवा करते है, उन्हें सही रास्ता दिखाते है ऐसे महामानव की ज्ञान परक बातें उनके सत्य वचन और उनके बताये मार्ग का अनुसरण करते है वे मानव अपनी जीवन की सभी समस्याओं से पार हो जाते है, इसलिए सभी लोंगो को उनके बताये मार्ग पर चलना चाहिए तभी हमारे जीवन का अर्थ सिद्ध होगा।
दोस्तों इस लेख में आपने कबीर दास पर निबंध हिंदी में (Essay on kabir das) पड़ा आशा करता हूँ, यह लेख आपको अच्छा लगा होगा।
FAQs for Essay on kabirdas
कबीरदास का जन्म कब हुआ?
कबीरदास का जन्म 1398 ई. में हुआ था।
कबीरदास के माता पिता कौन थे?
कबीरदास के जन्म के बारे में मतभेद है कोई कहता है कबीरदास जी कमल के फूल पर अवतरित हुए तो कोई कहता है उन्हें विधवा ब्राह्मणी ने जन्म दिया किन्तु उनका पालन पोषण भीरू और नीमा नामक दम्पति ने किया था।
क्या कबीरदास भगवान है?
कबीरदास जी भगवान के ही अंश माने गए है।
कबीर शब्द का शाब्दिक अर्थ क्या है?
कबीर शब्द एक पवित्र शब्द है, जिसका अर्थ महान आत्मा तथा महान सूफी संत होता है।
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